
इस साल अक्षय तृतीया का पर्व 30 अप्रैल को मनाया जाएगा। अक्षय तृतीया वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनायी जाती है। अक्षय तृतीया उन पांच मुहुर्तों में से एक है जिसके लिए अन्य किसी गुण-दोष अर्थात तिथि, वार, नक्षत्र, योग अैर करण आदि के दोष का कोई प्रभाव नहीं होता है यह अपने आप में पूर्ण रूप से शुद्ध मुहुर्त है। इस मुहुर्त में आप किसी भी प्रकार के कार्य को कर सकते हैं जैसे- विवाह, गृहप्रवेश, यात्रा आदि। आखा तीज या अक्ती को ही अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है।

अक्षय तृतीया को लेकर कई कहानियां हमारे शास्त्रों में वर्णित है-
अक्षय तृतीया के ही दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है।
इस दिन भगवान देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है.। लक्ष्मी जी को प्रिय खीर आदि का भोग विशेष रूप से लगाया जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन किया गया कार्य का कभी क्षय नहीं होता इसलिए अक्षय तृतीया वाले दिन शुभ कार्यों का प्रारंभ करना चाहिए। इसलिए कई लोग आज के दिन व्यपार आदि प्रारंभ करते हैं। इसी मान्यता को मानते हुए कि अक्षय शब्द का अर्थ ही है ऐसी चीज़ से जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता. आज के दिन किया गया कार्य का क्षय नहीं होता इसलिए लोग सोना-चांदि अर्थात मंहगे धातु, हीरा-जवाहरात आदि को खरीद कर रखना पसंद करते हैं।
अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहा जाता है शास्त्रो ं के अनुसार त्रेता युग का आरंभ भी इसी तिथि को हुआ था इसलिए भी इसका बहुत महत्व है।
अक्षय तृतीया पर ही श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को अक्षय पात्र दिया था। इस पात्र की यह विशेषता थी कि इसका भोजन कभी समाप्त नहीं होता था। युधिष्ठिर अपने राज्य के भूखे और गरीब लोगों को इसी पात्र की मदद से भोजन उपलब्ध कराते थे। भविष्य पुराण में अक्षय पात्र का संबंध मनुष्य के दान धर्म से बताया गया है। कहा भी जाता है कि दान करने से कभी धन घटता नहीं है।
जिस दिन श्री कृष्ण के मित्र सुदामा अपने मित्र से मिलने गए थे, उस दिन अक्षय तृतीया तिथि थी। सुदामा ने चावल की पोटली श्री कृष्ण को भेंट में दिया और कृष्ण ने उसे ग्रहण कर उनकी झोंपड़ी को महल में बदल दिया तथा अक्षय निधि भी बिना उनसे बताए दे दिया।
अक्षय तृतीया के दिन से ही महर्षि वेदव्यासजी ने महाभारत की कथा को सुनाना प्रारंभ किया था और गणेशजी ने इस कथा को लिखना आरंभ किया था। अक्षय तृतीया तिथि होने के कारण ही कहा गया है कि इसी वजह से कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध भी अक्षय है। जिसके कुछ उदाहरण आज भी कहीं-कहीं देखने को मिल जाते हैं।
द्रौपदी की लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय चीर प्रदान किया था। महाभारत में द्रौपदी के चीर हरण की घटना सर्वाधिक चर्चित मानी जाती है और महाभारत के युद्ध होने के कारणों में से एक कारण यह भी था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उस दिन भी अक्षय तृतीया ही थी जब कौरवों के साथ जुए में पांडव सब कुछ हारने के बाद द्रौपदी को ही दांव पर लगा दिया था।
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