top of page

वैदिक ज्योतिष का परिचय-

Jun 26

4 min read

2

82

0

वर्तमान समय में ज्योतिष की कई विद्या प्रचलित है। लेकिन हम सबसे प्राचीन पराशरी पद्धति से ज्योतिष को सिखेंगे। अब मन में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि इसका उद्गम कहां से हुआ? यह कितना सार्थक है? तो यह जानना जरूरी है कि ज्योतिष वेदांग है। अर्थात वेद का छठा अंग है। जब वेदांग है तो इसकी सार्थकता में कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगना चाहिये। मन में वेद के प्रति किसी तरह का संशय नहीं होना चाहिये। आप सभी होरा पराशर शास्त्र का अध्ययन करें. मैने भी प्रारंभ से अब तक इसी पुस्तक का अध्ययन किया है। पुस्तक में ऋषि पराशर व उनके परम शिष्य मैत्रैय का प्रश्न-उत्तर वार्तालाप के माध्यम से ज्योतिष बताया गया है. आइये इसकी चर्चा करते हैं


मैत्रैय उवाच


भगवन् ! परमं पुण्यं गुह्यं वेदाङ्गमुत्तमम् ।

त्रिस्कन्ध ज्यौतिषं होरागणितं संहितेति च ।।

ऐतेष्वपि त्रिषु श्रेठा होरेति श्रूयते मुने ! ।

त्वत्तस्तां श्रोतुमिच्छामि कृपया वद मे प्रभो ! ।।

कथं सृष्टिरियं जाता जगतश्च लयरू कथम् ! ।

खस्थानां भूस्थितानां च सम्बन्धं वद विस्तरात् ! ।।

उक्त श्लोक में त्रिस्कंध होरा, गणित व संहिता की बात हो रही है। मैत्रैय पराशर से कहते हैं, इन तीनों में जो होरा परम श्रेष्ठ है. कृपया मुझे बताइये. क्योंकि ये मानव कल्याण के लिए है। ईश्वर की सबसे खूबसूरत श्रृष्टि मानव है और सृष्टि में मौजूद पेड़-पौधे, जल-जंगल, पहाड़, हवा आदि मनुष्यों को प्राप्त होता है। यहां आगे गणित की भी बात की गयी है और होरा को हम तभी समझ पायेंगे, जब गणित की बात होगी। पंचांग निर्माण से लेकर ग्रहों का निर्धारण, लग्न क्या होगा? राशि क्या होगी? स्पष्ट ग्रह का निर्धारण कैसे होगा? शेष दशा किस प्रकार से समझा जा सकता है आदि सब कुछ गणित के ऊपर निर्भर करता है। सधारण शब्दों में होरा का मतलब ही फलित ज्योतिष है। मैं यहां बताना चाहता हूं कि भारतीय गणित किसी भी विज्ञान के गणित से आगे है। शास्त्रों में बताया गया है कि अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण होगा और पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण होगा और हम सौ साल आगे तक बताने में सक्षम हैं कि कब-कब सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण होगा। अब यहां अमावस्या व पूर्णिमा की चर्चा होगी तो तिथियों की भी चर्चा होगी और तिथियों की गणना सूर्य व चंद्रमा की गतियों पर निर्भर करता है, इसलिए यहां गणित का महत्व काफी बढ़ जाता है।. गणित से प्राप्त कर जो हम समझते हैं, उसे फलित कहते हैं, इसलिए गणित भी जरूरी है. लेकिन सिद्धांत को समझने में हम गणित में ज्यादा नहीं उलझेंगे। वर्तमान समय क्ंप्यूटर का है और इसकी गणना सटीक होती है, इसलिए गणित कंप्यूटर से प्राप्त हो जायेगा और फलित यहां से सिखेंगे तो आप निश्चित रूप से ज्योतिषी बनेंगे।

अब बात संहिता की आती है. संहिता शास्त्र से हमें भूगोल को समझने में मदद मिलती है, ग्रहों के गोचर से चर एवं स्थूल पदार्थों पर इसका क्या प्रभाव होता है जैसे- पहाड़ों, नदियों, झरनो व वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है? देश-विदेश के सरकार एवं बाजार पर ग्रहों के प्रभाव किस प्रकार होत है? बाढ़, वर्षा, भूकम्प, प्राकृतिक आपदा आदि के विषय में संहिता शास्त्र से समझना सरल होता है। उदाहरण के लिए अनावृष्टि, अतिवृष्टि, भूकंप, फसलों का नुकसान, सरकार का बदल जाना, गृह युद्ध, दूसरे देशों से युद्ध आदि का अनुमान लगाया जाता है. लेकिन अभी हमने फलित ज्योतिष प्रारंभ किया है. मानव के जीवन में कल्याण कैसे हो? यह भी बतायेंगे. लेकिन जिन लोगों को तीनों स्कंधों को जानने की जिज्ञाशा हो वे हमारे साथ आगे भी चल सकते हैं. फिलहाल हम यहां होरा को पढ़ेंगे. जहां जितनी गणित की जरूरत होगी, वह भी बतायेंगे।


शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तं निरुक्तं च कल्पः करौ।

या तु शिक्षऽस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयं छन्द आद्यैर्बुधैः।।

उपर्युक्त श्लोक में वेद के छह अंगों को बताया गया है। यहां ज्योतिष को छठे अंग के रूप में बताया गया है। विद्वान महर्षियों ने चारो वेदों में वेदपुरुष भगवान के छः अंगों का वर्णन करते हुए लिख है-


शिक्षा को वेद का नासिका कहा गया है।


कल्प को वेद का कर अर्थात हथेली कहा गया है, जिसेमें यज्ञों एवं संस्कारों की विधियां बतायी गयी है।


निरूक्त को श्रोत्रमुक्त कहा गया है जिसमें वैदिक शब्दों की व्याख्या बतायी गयी है जिसे व्युत्पत्ति विज्ञान भी कहते हैं।


छंद को वेद का दोनो पद अर्थात पैर कहा गया है जिसमें वैदिक मात्राओं का ज्ञान जैसे- लय, स्वर, गति, विराम, ह्रस्व तथा दीर्घ उच्चारण आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।


शब्द को वेद का मुख कहा गया है, इसको व्याकरण भी कहना उचित होगा। यहां शब्द रचना, वाक्य रचना तथा उनके रूपों का प्रयोग आदि का ज्ञान प्राप्त होता है।

ज्योतिष को वेद का चक्षु कहा गया है, ग्रह नक्षत्रों की स्थिति व गति आदि की गणना तथा चराचर जगत पर पडने वाले इनके प्रभावों का ज्ञान होता है।


यहां हम वेद के नेत्रों को समझेंगे। जैसे आंखों के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है, वैसे ही ज्योतिष के बिना वेद की सार्थकता भी संभव नहीं है। अब से हमलोग ज्योतिष सिखना प्रारंभ करेंगे। हमलोगों में से कोई भी धर्म से परे नहीं है और हमारा ऐसा कोई प्रश्न नहीं है, जिसका उत्तर हमारे वेदों में नहीं है। हमारे वेदों में यही समझाने का प्रयास किया गया है कि यह प्रकृत त्रैगुण संपन्न है- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। हम यह भी जानते हैं कि पूरा ब्राह्मांड और हमारा शरीर पांच तत्वों से बना है- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. आगे हम त्रैगुण व पांच तत्वों को समझते हुए ज्योतिष सिखने का प्रयास करेंगे.

Jun 26

4 min read

2

82

0

Related Posts

Comments

Share Your ThoughtsBe the first to write a comment.
653f796ca9a83-1698658668 (1)_edited.png

Explore. Enlighten. Empower.

Contact Us

Address: TRUTHS OF ASTRO, ITHARA, Greater Noida West, Uttar Pradesh.

Connect With Us

Phone No: 9911189051, 9625963880

Stay updated with the cosmic revelations and celestial updates.

Thank You for Subscribing!

  • Instagram
  • Facebook
  • YouTube

Jyotishacharya Sharwan Kumar Jha

Jyotishacharyaa Meenu Sirohi

  • Instagram
  • Facebook
  • YouTube

© 2024 by Truths of Astro. All rights reserved.

bottom of page