
किसे पूजा पाठ करना चाहिए और किसे नहीं, क्या ये ज्या तिषी बताएगा?
Jun 24
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ज्योतिष के महत्व को गिराने का काम कुछ ज्योतिषाचार्य करते हैं, न जाने वो कौन से ज्योतिष पद्धति को अपनाते हैं जो अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं और जो उनकी मर्जी में आता है उसे ही बोलते हैं।
आपको समझना होगा और सतर्क रहना होगा कि ऐसे लोगों का विश्वास करें या न करें। तथा कथित ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि गुरु यदि 6-8-12 भाव में है तो आपको पूजापाठ नहीं करना चाहिए या गुरु अगर पत्रिका में वक्री है तब भी पूजा-अर्चना आप न करें, अगर आप ऐसा करते है तो तुरंत बंद करना होगा अन्यथा आपके ये भाव सक्रिय हो जाएंगे और अगर ये सक्रिय हो गये तो जीवन परेशानियों से भर जाएगा।
अब आप ही बताएं कि चाहे कोई किसी भी धर्म को मानने वाला क्यों न हो, क्या उन्हें अपने पूजा-पाठ से दूर होना चाहिए और अपने अराध्य की पूजा-अर्चना नहीं करनी चाहिए।
जो भी ज्योतिषचार्य ऐसी टिपण्णी देते है उन्हें सबसे पहले पूजा -पाठ का अर्थ जानना होगा। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, दिन में न जाने कितनी बार हम अपने आराध्य का नाम लेते हैं या जिसमें भी आपकी आस्था हो, उस परमशक्ति को याद करते ही है।
इसका अर्थ तो ये हुआ की जब भी मैं या आप ऐसा उच्चारण करेंगे तभी ये ये भाव सक्रीय हो जाएगा। फिर तो हमारे पूर्वजों को समस्याएं अधिक होनी चाहिए थी क्यूं कि उनके तो दिन का प्रारम्भ भी ईश्वर भक्ति से होता था और अंत भी ईश्वर भक्ति से होता था। लेकिन जहाँ तक मुझे लगता है समस्याएं तो अब ज्यादा है।
इसका तात्पर्य तो हुआ की हमारे पूर्वजों के समय शायद गुरु वक्री हुआ ही नहीं होगा या 6-8-12 भाव में गुरु स्थित ही नहीं होता होगा, शायद ये ज्योतिषाचार्य यही समझाना चाहते है।
ये तो श्री कृष्णा से भी बढ़कर है या कहें वर्त्तमान के श्रीकृष्ण यही तो नहीं ?
श्रीकृष्ण कहते है --
जो मनुष्य किसी से द्वेष नही करता है, सभी प्राणीयों के प्रति मित्र-भाव रखता है, जो अपने को स्वामी नहीं मानता और मिथ्या अहंकार से मुक्त है, जो सुख-दुःख में सम भाव है, सभी जीवों के प्रति दया-भाव रखने वाला है, ममता से मुक्त, मिथ्या अहंकार से मुक्त, सुख और दुःख को समान समझने वाला, और सभी के अपराधों को क्षमा करने वाला है।
जो मनुष्य निरन्तर भक्ति-भाव में स्थिर रहकर सदैव प्रसन्न रहता है, दृढ़ निश्चय के साथ मन सहित इन्द्रियों को वश किये रहता है, और मन एवं बुद्धि को मुझे अर्पित किए हुए रहता है ऐसा भक्त मुझे प्रिय होता है।
जो मनुष्य न तो किसी के मन को विचलित करता है और न ही अन्य किसी के द्वारा विचलित होता है, जो हर्ष-संताप और भय-चिन्ताओं से मुक्त है ऐसा भक्त भी मुझे प्रिय होता है।
जो मनुष्य किसी भी प्रकार की इच्छा नही करता है, जो शुद्ध मन से मेरी आराधना में स्थित है, जो सभी कष्टों के प्रति उदासीन रहता है और जो सभी कर्मों को मुझे अर्पण करता है ऐसा भक्त मुझे प्रिय होता है। जो मनुष्य न तो कभी हर्षित होता है, न ही कभी शोक करता है, न ही कभी पछताता है और न ही कामना करता है, जो शुभ और अशुभ सभी कर्म-फ़लों को मुझे अर्पित करता है ऐसी भक्ति में स्थित भक्त मुझे प्रिय होता है। जो ज्ञान में दृढ़ है और भक्ति में संलग्न है ऐसा भक्त मुझे प्रिय है।
अब आप ही बताये पंडित जी क्या किया जाए ?
क्या कण-कण में व्याप्त उस परम शक्ति को भूल जाए ?
क्या स्वयं को श्रेष्ठ मान लिया जाए ?
क्या एक और अन्धकार की बाढ़ से आमजन को भयभीत किया जाए ?
क्या लोगों की आस्था और विश्वास के साथ खिलवाड़ किया जाए ?
जिस भक्ति या पूजा अर्चना से उनको सुकून मिलता है, क्या उस सुकून को छीन लिया जाए ?
क्या दिवाली की पूजा को भी बंद कर दिया जा ए ?
बड़े-बड़े उद्योगपतियों से भी जाकर एक बार कहना होगा की ईश्वर भक्ति न करें , हो सकता है की उनका भी गुरु छठे, आठवें या बाहरवें भाव में हो या वक्री हो।
तीर्थ यात्राओं में उन्ही को जाने दिया जाए जिनकी पत्रिका में गुरु अच्छी स्तिथि में है।
मंदिरों में प्रवेश से पूर्व सभी की कुंडली का सूक्ष्मता से निरिक्षण किया जाए।
ऐसे तथाकथित ज्योतिषियों के साथ किस प्रकार का व्यवहार लोगों को करना चाहिए। कम से कम उनका परित्याग तो करना ही चाहिए। लेकिन पाप कर्म में लिप्त तथा किसी भी प्रकार से धन की इच्छा रखने वाले लोग इस बात को भी मानते हैं।
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मीनू सिंह सिरोही
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