
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया।
श्वेतारक्ता तथा पीता कृष्णा वर्णानुपूर्वतः।। 24।।
सुगन्धा बा्रह्मणी भूमिः रक्तगन्धा तु क्षत्रिया।
मधुगन्धा भवेद् वैश्या मद्यगन्धा च शूद्रिका।। 25।।
मधुराब्राह्मणी भूमिः कषाया क्षत्रिया मता।
अम्ला वैश्या भवेद् भूमिः तिक्ता शूद्रा प्रकीर्तिता।। 26।।

भूमि चयन के लिए सबसे पहले भूमि के लक्षण का विचार कर लेना चाहिए। ज्योतिष में चार वर्णों की बात की गई है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। यहां हम लोग वास्तु की बात कर रहे हैं और वास्तु में भूमि की बात होती है इसे स्त्रीलिंग कहते हैं। हम लोग बोलचाल की भाषा में भी धरती माता कहते हैं, इसलिए यहां हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने प्रयोग में इन वर्णों के स्त्रीलिंग का प्रयोग किया है ब्राह्मण के जगह ब्राह्मणी लिखा गया है, वैश्य की जगह वैश्या क्षत्रिय के जगह क्षत्रिया और शूद्र के जगह शूद्रा लिखा गया है। यहां हम लोग यह सम झते हैं कि शब्दों के चयन के साथ-साथ उसके साधन का भी ध्यान रखा गया है ।
भूमि के लक्षण को समझने के लिए भूमि का रंग, सुगंध, स्वाद एवं उस भूमि में उत्पन्न होने वाले त्रिणादि (घास) से उसका विचार करने के लिए कहा गया है ।
यहां हम लोगों को सबसे पहले तो यह ध्यान रखना है कि यहां वर्णों के विषय में बताया जा रहा है ना कि जातियों के विषय में वर्तमान समय में वर्णनात्मक विश्लेषण को जाति के आधार पर विश्लेषण मानकर समझने की भूल ना करें और वर्णानात्मक विश्लेषण किसी के भी कर्म करने के आधार पर ही समझना उचित होगा ।
वास्तु में ब्राह्मण के जगह ब्राह्मणी का प्रयोग किया गया। ब्राह्मणी शब ्द से यहां अर्थ यह समझना है कि जो सतोगुणी हों अर्थात पठन-पाठन आदि का कार्य करते हों सेवा के कार्य को करते हों दूसरों को ज्ञान देने का कार्य करते हों। ऐसे लोगों के लिए जिस प्रकार की भूमि होनी चाहिए उस भूमि को ही ब्राह्मणी कहेंगे।
क्षत्रिय के जगह पर क्षत्रिया शब्द का प्रयोग किया गया है। क्षत्रिय शब्द से अर्थ यह प्राप्त होता है कि जो लोग सुरक्षा के लिए कार्य करते हैं अर्थात सेना व पुलिस में कार्य करते हैं तथा समाज में किसी भी तरह के सुरक्षा के कार्य करते हैं। ऐसे सुरक्षा प्रदान करने वाले लोगों के लिए जिस प्रकार की भूमि बताई गई है उसे ही क्षत्रिया कहेंगे।
वैश्य के लिए वैश्या शब्द का प्रयोग किया गया है इसका अर्थ हम लोगों को यहां यह समझना है कि जो लोग व्य ापार आदि के क्षेत्र में कार्य करते हैं, चाहे वह किसी भी तरह का व्यापार हो छोटा व्यापार हो या बड़ा व्यापार हो सभी व्यापारी वर्गों के लिए भूमि का जो लक्षण बताया गया है उसे ही वैश्या कहेंगे ।
शूद्र के जगह पर यहां शूद्रा शब्द का प्रयोग किया गया है इसका अर्थ यह होता है कि जो लोग भी शारीरिक श्रम से कार्य करते हांे उनके लिए इस प्रकार की भूमि का चयन करना चाहिए।
प्रश्न उठता है कि वर्तमान परिवेश में क्या इस प्रकार से चयन कारना संभव है? यदि नही ंतो फिर इसका प्रयोग हम लोगों को कहां करना चाहिए। किस अर्थ में हम लोगों को इस विषय को समझना चाहिए, क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा जो कुछ भी लिखा गया वह सभी युगों-युगों तक किसी न किसी रूप से सार्थक माना जाता है। हम लोग आगे वास्तु निर्माण के लिए भूमि जैसे स्कूल, अस्पताल, आश्रम, कल कारखाने, व्यवसायिक या गरीब को दिये जाने वाले स्थान आदि बनाने के लिए जब भूमि का चयन करें तो उस समय यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो सर्वथा उचित होगा और बनाए गए वास्तु को साकारात्मक उर्जा मिलेगी जिससे आप अपने जीवन में सुखी व समृद्ध हो सकेंगे।
_edited.png)





